20+ Motivational Poem In Hindi | मोटिवेशनल कविता हिंदी में

By | November 6, 2023

Motivational Poem In Hindi – दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए लेकर आए हैं प्रेरणादायक हिन्दी कविताएँ जो की हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं हमें उम्मीद है आप सभी को ये प्रेरणादायक हिंदी कविताएँ जरुर पसंद आएगी |

Motivational Poem In Hindi

1 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती | Motivational Poem In Hindi

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है।
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है।
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है।
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है।

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में।
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो।
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम।
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम।

कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।

[ सोहनलाल द्विवेदी ]

2 मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ,
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो |

हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते,
मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढ़ाते,
सच कहता हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं |

मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते,
मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे,
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो |

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो |

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ,
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूँ,
हूँ आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से |

सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ,
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी,
तुम मत मुझ पर कोई एहसान करो |

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ.
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो |

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है,
गती की मशाल आँधी में हीं हँसती है,
शोलों से हीं श्रृंगार पथिक का होता है |

मंजिल की मांग लहू से हीं सजती है,
पग में गती आती है, छाले छिलने से,
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो |

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ.
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो |

फूलों से जग आसान नहीं होता है,
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है,
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती भी |

है नाश जहाँ, निर्मम वहीं होता है,
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग धरा पर जिससे,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो |

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ.
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो |

मैं पंथी तूफ़ानों में राह बनाता,
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता,
वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर |

मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता,
मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हँसकर जिससे,
तुम मेरा मन-मानस पाशाण करो |

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ.
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो |

[ गोपालदास नीरज ]

3 चलना हमारा काम है

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने है

रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई


कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,


हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,


किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा


निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए


रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया


सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।

[ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ]

4 सपनों में उड़ान भरो

कुछ काम करो,
न मन को निराश करो
पंख होंगे मजबूत,

तुम सपनों में साहस भरो,
गिरोगे लेकिन फिर से उड़ान भरो,
सपनों में उड़ान भरो।

तलाश करो मंजिल की,
ना व्यर्थ जीवनदान करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो,


अभी शुरुआत करो,
सुयोग बीत न जाए कहीं,
सपनों में उड़ान भरो।

समझो खुद को,
लक्ष्य का ध्यान करो,
यूं ना बैठकर बीच राह में,


मंजिल का इंतजार करो,
संभालो खुद को यूं ना विश्राम करो,
सपनों में उड़ान भरो।

उठो चलो आगे बढ़ो,
मन की आवाज सुनो,
खुद के सपने साकार करो,


अपना भी कुछ नाम करो,
इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करो,
सपनों में उड़ान भरो।

बहक जाएं गर कदम,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम पा ना सको ऐसी कोई मंजिल नहीं,


हार जीत का मत ख्याल करो,
अडिग रहकर लक्ष्य का रसपान करो,
सपनों में उड़ान भरो।

[ नरेंद्र वर्मा ]

5 अग्निपथ

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,


एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

[ हरिवंश राय बच्चन ]

6 तुम चलो तो सही

राह में मुश्किल होगी हजार,
तुम दो कदम बढ़ाओ तो सही |

हो जाएगा हर सपना साकार,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही |

मुश्किल है पर इतना भी नहीं,
कि तू कर ना सके |

दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,
कि तु पा ना सके,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही |

एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,
तुम्हारा भी सत्कार होगा |

तुम कुछ लिखो तो सही,
तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही |

सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,
तुम एक राह है चुनो तो सही |

तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही |

कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,
जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे |

गिरते पड़ते संभल जाओगे,
फिर एक बार तुम जीत जाओगे,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही |

[ नरेंद्र वर्मा ]

7 क्यों डरता है

कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।

आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।

तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।

झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।

हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।

भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।

किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।

भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।

[ नरेंद्र वर्मा ]

8 सपने बुनना सीख लो

बैठ जाओ सपनों के नाव में,
मौके की ना तलाश करो,
सपने बुनना सीख लो।

खुद ही थाम लो हाथों में पतवार,
माझी का ना इंतजार करो,
सपने बुनना सीख लो।

पलट सकती है नाव की तकदीर,
गोते खाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

अब नदी के साथ बहना सीख लो,
डूबना नहीं, तैरना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

भंवर में फंसी सपनों की नाव,
अब पतवार चलाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

खुद ही राह बनाना सीख लो,
अपने दम पर कुछ करना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

तेज नहीं तो धीरे चलना सीख लो,
भय के भ्रम से लड़ना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

कुछ पल भंवर से लड़ना सीख लो,
समंदर में विजय की पताका लहराना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।

[ नरेंद्र वर्मा ]

9 चल तू अकेला

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला,
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए तो चल तू अकेला |

जब सबके मुंह पे पाश….
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाए!

तब भी तू दिल खोल के, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!

जब हर कोई वापस जाए….
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई वापस जाए….
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाए…..

[ रवीन्द्रनाथ ठाकुर ]

10 तुम मन की आवाज सुनो

तुम मन की आवाज सुनो,
जिंदा हो, ना शमशान बनो,
पीछे नहीं आगे देखो,
नई शुरुआत करो।

मंजिल नहीं, कर्म बदलो,
कुछ समझ ना आए,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम मन की आवाज सुनो।

लहरों की तरह किनारों से टकराकर,
मत लौट जाना फिर से सागर,
साहस में दम भरो फिर से,
तुम मन की आवाज सुनो।

सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो,
कुछ काम करो,
सपनों को साकार करो,
तुम मन की आवाज सुनो।

इम्तिहान होगा हर मोड़ पर,
हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,
तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर,
तुम अपने मन की आवाज सुनो।

[ नरेंद्र वर्मा ]

10 किस्तों में मत जिया करो

हर पल है जिंदगी का उम्मीदों से भरा,
हर पल को बाहों में अपनी भरा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

सपनों का है ऊंचा आसमान,
उड़ान लंबी भरा करो,
गिर जाओ तुम कभी,
फिर से खुद उठा करो।

हर दिन में एक पूरी उम्र,
जी भर के तुम जिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।

आए जो गम के बादल कभी,
हौसला तुम रखा करो,
हो चाहे मुश्किल कई,
मुस्कान तुम बिखेरा करो।

हिम्मत से अपनी तुम,
वक्त की करवट बदला करो,
जिंदा हो जब तक तुम,
जिंदगी का साथ ना छोड़ा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

थोड़ा पाने की चाह में,
सब कुछ अपना ना खोया करो,
औरों की सुनते हो


कुछ अपने मन की भी किया करो,
लगा के अपनों को गले गैरों के संग भी हंसा करो,
किस्तों में मत जिया करो।

मिले जहां जब भी जो खुशी,
फैला के दामन बटोरा करो,


जीने का हो अगर नशा,
हर घूंट में जिंदगी को पिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।

[ विनोद तांबी ]

11 कोशिश कर हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नहीं तो, कल निकलेगा.

अर्जुन के तीर सा सध
मरूस्थल से भी जल निकलेगा.

मेहनत कर, पौधों को पानी दे
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा.

ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे
फ़ौलाद का भी बल निकलेगा

जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को
गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा.

कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा

[ आनंद परम ]

12 गिरना भी अच्छा है

“गिरना भी अच्छा है,
औकात का पता चलता है…
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को…
अपनों का पता चलता है!

जिन्हे गुस्सा आता है,
वो लोग सच्चे होते हैं,
मैंने झूठों को अक्सर
मुस्कुराते हुए देखा है…

सीख रहा हूँ मैं भी,
मनुष्यों को पढ़ने का हुनर,
सुना है चेहरे पे…
किताबो से ज्यादा लिखा होता है…!”

[ अमिताभ बच्चन ]

13 जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे

वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सम्भालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो

है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो

चढ़ तुँग शैल शिखरों पर सोम पियो रे।
योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे।।

जब कुपित काल धीरता त्याग जलता है
चिनगी बन फूलों का पराग जलता है

सौन्दर्य बोध बन नई आग जलता है
ऊँचा उठकर कामार्त्त राग जलता है

अम्बर पर अपनी विभा प्रबुद्ध करो रे।
गरजे कृशानु तब कँचन शुद्ध करो रे।।

जिनकी बाँहें बलमयी ललाट अरुण है
भामिनी वही तरुणी, नर वही तरुण है

है वही प्रेम जिसकी तरँग उच्छल है
वारुणी धार में मिश्रित जहाँ गरल है

उद्दाम प्रीति बलिदान बीज बोती है।
तलवार प्रेम से और तेज होती है।।

छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए
मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाए

दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है
मरता है जो एक ही बार मरता है

तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे।
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे।।

स्वातन्त्रय जाति की लगन व्यक्ति की धुन है
बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है

वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे।
जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे।।

जब कभी अहम पर नियति चोट देती है
कुछ चीज़ अहम से बड़ी जन्म लेती है

नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है
वह उसे और दुर्धुर्ष बना जाती है

चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तनो रे।
धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे।।

उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है
सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है

विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिन्तन है
जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है

सबसे स्वतन्त्र रस जो भी अनघ पिएगा।
पूरा जीवन केवल वह वीर जिएगा।।

[ रामधारी सिंह दिनकर ]

14 मन के जीते जीत

बाधाएँ तो आती है,
वह आती हैं और आती रहेंगी |

तू डर मत, तू रूक मत,
बस अपना कर्म करते चल |

मन को बना ले सरिता,
बाधाओं के बीच रास्ता बनाते चल |

क्योंकि मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत |

जरूरी नहीं जीवन में तुझे शीतल,
मंद, सुगंधित समीर मिले |

सामने गर्म पवन, सर्द हवाएँ,
आंधी तूफानों के चक्रवात भी आएँगे |

तू हिम्मत न हार, मन छोटा ना कर,
मन को अपने सुमेरु बना |

क्योंकि मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत |

क्या हुआ जो तू ठोकर लगने से,
औरों की तरह गिर गया |

गिरने में कोई बड़ी बात नहीं,
फिर से संभल और इतिहास बना |

जिन पत्थरों से तुझे ठोकर लगी,
उन्हें हीं सफलता की सीढ़ी बना |

क्योंकि मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत |

उलझनों के भंवर में,
अगर फंसी है तेरी जीवन नैया |

इधर-उधर के लहरों के थपेड़े भी
जब तुझे विचलित करने लगे |

तब भय छोड़ हिम्मत से कर सामना,
मन को तू अपने पतवार बना |

क्योंकि मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत |

जीवन एक संघर्ष है,
तू इससे कब तक बचेगा और भागेगा |

हिम्मत से कर सामना, मन को कस,
कर इस पर अपना वश |

अपनी सफलता की कहानी,
स्वयं अपने कर्मों से तू लिख |

क्योंकि मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत |

[ लोकेश्वरी कश्यप ]

15 पुष्प की अभिलाषा | Motivational Poem in Hindi

चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूँथा जाऊँ,

चाह नहीं प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं, सम्राटों के शव,
पर, हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक।

[ माखनलाल चतुर्वेदी ]

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